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लेखनी प्रतियोगिता -06-Dec-2022 प्रेम के नियम

आजकल चारों ओर प्रेम की बरसात हो रही है । सब लोग इस बरसात का आनंद ले रहे हैं । ज्ञानी लोग कह रहे हैं कि प्रेम के कोई नियम नहीं है इसलिए प्रेम की बरसात भी नियमों से परे जाकर अपना जलवा दिखा रही है । कहीं कहीं तो बाढ के हालात बन गए हैं और कहीं ओलावृष्टि हो रही है । बाढ और ओलावृष्टि से घबराकर लोग त्राहि त्राहि कर रहे हैं और कह रहे हैं कि ऐसे भी कोई बरसता है क्या ? प्रेम के भी कुछ तो नियम होने चाहिए ? आजकल लोग पार्कों में "प्रेम की बरसात" करने लगे हैं । कुछ सुधीजन प्रश्न कर रहे हैं कि क्या हर कहीं "बरसा" जा सकता है ? इस पर ज्ञानी लोग मौन हैं क्योंकि वे लोग पहले ही कह चुके हैं कि प्रेम नियमों के बंधन में बंधा हुआ नहीं है । प्रेम का सार्वजनिक प्रदर्शन देखकर मन आनंदित हो रहा है । हम समझ नहीं पा रहे हैं के ज्ञानी लोग जो कह रहे हैं कि प्रेम नियमों से परे है, वे सही हैं या सुधीजन जो कह रहे हैं कि कुछ तो नियम होने चाहिए । बड़ा असमंजस है भाई । 


कुछ लोग "रेनकोट" पहने हुए और छाता पकड़े हुए इस प्रेम की बरसात का आनंदले रहे हैं । ऐसे लोग बड़े "चालाक" किस्म के होते हैं । ऐसे लोग प्रेम की बौछारों में भीगना तो चाहते हैं पर इन्हें डर लगता है कि कहीं प्रेम की ये बरसात उनका सब कुछ बहाकर नहीं ले जाये मसलन घर परिवार । वे लोग शायद इसलिए डरते हैं कि यदि इस "प्रेम की बरसात" की एक भी बूंद उनके कपड़ों पर पड़ गई और उसे उनकी घरवाली ने देख लिया तो अनर्थ हो जायेगा । फिर प्रेम की बौछारों में भीगना उनके लिये भारी पड़ जायेगा । इससे सर्दी, खांसी, बुखार हो सकता है और नौबत तलाक तक पहुंच सकती है । वैसे भी आजकल विवाह कम और तलाक ज्यादा हो रहे हैं । ये भी प्रेम के खिलते बगीचे का परिणाम हो सकता है । 

प्रेम भी बड़ी स्पेशल चीज है, किसी को थोक भाव में होती है तो किसी को फुटकर में भी नहीं होती है । लेकिन प्रेम करने वाले लोग बड़े दिलदार किस्म के होते हैं । सागर को ही देख लो । कितना बड़ा दिल है उसका । वह गंगा से भी प्रेम करता है और सिंधु, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, गोदावरी , कृष्णा, कावेरी से भी प्रेम करता है । इनके अलावा सैकड़ों नदियों से भी प्रेम करता है वह । इसे कहते हैं सच्चा प्रेम । निश्छल, मुक्त, अविरल । सागर को देखकर लगता है कि वास्तव में प्रेम का कोई नियम नहीं है, प्रेम नियमों से परे है । और इन नदियों को देखो , ये भी सागर के प्रेम में कितनी मगन हैं । सागर से मिले बिना उन्हें चैन ही नहीं आता है । उन्हें पता है कि सागर अनेक नदियों से प्रेम करता है मगर इन नदियों का दिल इतना बड़ा है कि वे ऐसी छोटी छोटी बातों पर ध्यान नहीं देती हैं । सौतिया डाह से भरी हुई नहीं हैं वे औरतों की तरह । इसे कहते हैं वास्तविक प्रेम । पुरुषों का हृदय भी सागर की तरह विशाल होता है मगर स्त्रियों का हृदय नदियों की तरह विशाल नहीं होता । अगर होता तो श्रद्धा के 35 टुकड़े नहीं होते । संकुचित हृदय रखने की सजा श्रद्धा ने पा ली है । अगर वह भी अपना दिल बड़ा रखती और दूसरी श्रद्धाओं को भी आफताब रूपी सागर में समाने देती तो वह आज भी जिंदा रहती । आफताब का क्या है , उसने तो प्रेम किया था और प्रेम नियमों से परे है, ऐसा कहकर कोई न कोई जज उसे बरी कर ही देगा । आजकल न्यायपालिका प्रेम की परिभाषाऐं गढने में कुछ ज्यादा ही सक्रिय है । 

पर सब लोगों का नसीब सागर जैसा नहीं होता है न । कुछ लोग आसमान की तरह होते हैं । प्रेम में पागल होकर उल्टे लटके रहते हैं और धरती की तरह अपनी अपनी प्रेमिकाओं को सदैव ताकते रहते हैं । इससे आगे बढने की उनमें हिम्मत ही नहीं होती है । बेचारी धरती इंतजार करती रहती है कि ये आसमान रूपी प्रेमी अब आगे बढकर उसे अपनी बांहों में थामेगा , मगर धरती बांहें फैलाए खड़ी की खड़ी रह जाती है और संकोची आसमान उसे दूर से ही बस टुकुर टुकुर देखता रहता है । बेचारे । कभी मिल ही नहीं पाते हैं । पर धरती भी आजकल की लड़कियों की तरह नहीं है जो अपने पर्स में पांच सात प्रेमी ले के चले । वह तो राधा की तरह अपने आसमान से अनंत काल से प्रेम करती आई है और करती रहेगी ।

आजकल लोग नियम, कायदे, कानून किसी को नहीं मानते हैं । रीति-रिवाज, परंपराओं और सामाजिक मूल्यों को भी नहीं । "प्रेमा" जी अपनी सहेली "लवी" से इश्क कर बैठी । दोनों की मम्मियों ने उन्हें बहुत समझाया कि प्रेम मर्द और औरत में ही हो सकता है स्त्रियों में नहीं । तो उन्होंने झट से कह दिया "प्रेम के नियम होते हैं क्या" ? उनकी मम्मियां भी इस प्रश्न से चुप हो गईं क्योंकि वे भी यही मानती थीं कि प्रेम नियमों से कब बंधा है ? 

इसी तरह प्रेमा के भाई प्यार सिंह को प्रेमचंद से प्रेम हो गया । आजकल तो सब संभव है । इसे कहते हैं मर्दाना प्यार ।  अब दोनों के बाप भी क्या कर सकते थे ? उनकी देखादेखी प्रेमचंद के भाई किन्नर राम को एक किन्नरी से प्रेम हो गया । मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो सुप्रीम कोर्ट ने भी वही कहा जो सारे ज्ञानी कहते हैं "प्रेम को नियमों में नहीं बांधा जा सकता है" । आजकल उपदेश देने का सारा ठेका सुप्रीम कोर्ट ने ले रखा है और उसने ठान लिया है कि देश की संस्कृति में वे आमूलचूल परिवर्तन लेकर आयेंगे । अब तो इस परिवर्तन की आहट भी सुनाई देने लगी है । 

श्री हरि 
6.12.22 

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8 Comments

Abhinav ji

07-Dec-2022 08:12 AM

Very nice👍

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Hari Shanker Goyal "Hari"

07-Dec-2022 04:25 PM

धन्यवाद जी

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Varsha_Upadhyay

06-Dec-2022 07:57 PM

शानदार

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Hari Shanker Goyal "Hari"

07-Dec-2022 07:20 AM

धन्यवाद जी

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Peehu saini

06-Dec-2022 05:53 PM

Anupam 🌸👏

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Hari Shanker Goyal "Hari"

07-Dec-2022 07:20 AM

धन्यवाद जी

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